इल्म के समन्दर हैं सोज़ जिनको कहते हैं

इल्म के समन्दर हैं सोज़ जिनको कहते हैं
रहबरों के रहबर हैं सोज़ जिनको कहते हैं

गुलशने नियाज़ी  के  गुलशने  अदीबी  के
फैज़ से मोअत्तर हैं सोज़ जिनको कहते हैं 

हर जगाह ये कहते थे दिल से फातहे अजमेर
मेरे प्यारे दिलबर हैं सोज़ जिनको कहते हैं

जब निगाह डाली तो बस यही नज़र आया 
बेहतरों से बेहतर हैं सोज़ जिनको कहते हैं 

क़ुत्बे हर दो आलम की निस्बतों का है सदक़ा 
तन्हा रह के लश्कर हैं सोज़ जिनको कहते हैं 

आज   शायरी  की  जो  रौशनी  लुटाते  हैं
उन दियों के मसदर हैं सोज़ जिनको कहते हैं  

माँगें  हम भला क्यूँकर  ,चाँद,  एरे  ग़ैरों   से 
जब अता का अम्बर हैं सोज़ जिनको कहते हैं 

Gulame  soz chand adil🖋 madari

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